झारखण्ड में 1908 का कानून
आज भी लागू है, जिससे आदिवासियों
का विकास आज भी बाधित है:
अधिवक्ता आशीर्वाद बेदिया
अधिवक्ता आशीर्वाद बेदिया
संवाददाता रांची, जाने- माने और चर्चित रांची सिविल कोर्ट के अधिवक्ता आशीर्वाद बेदिया ने इस संवाददाता से एक मुलाकात के क्रम में सीएनटी एक्ट का सी.एन.टी के मामले पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अंग्रेजों द्वारा 1908 में बनाया गया कानून आदिवासी, मूलवासी, गरीब और कमजोर वर्गों के हित में बनाए गए थे, आदिवासी, हरिजन और ओ.बी.सी. जाति का तीन कैटेगरी (श्रेणी) में परमिशन से लेकर आपसी खरीद- बिक्री के मद्देनजर यह 1908 का कानून है ताकि उक्त तीनों श्रेणी के जमीन को कोई उच्च श्रेणी के व्यक्ति गुमराह कर, बरगला कर लूट न सकें। इसलिए छोटानागपूर काश्तकारी अधिनियम की धारा 46 ।एठएब्ए जमीन खरीद-बिक्री, आदान- प्रदान करने का कानून बनाया गया था जो अंग्रेजों की सोंच थी कि उक्त तीनों श्रेणी के समुदाय को और उनकी जमीन को कोई उनसे गुमराह करके हड़प न सके।
यह कानून 1908 में बना और देश आजाद हुआ 1947 में तथा सरकार का गठन भी हुआ, अधिवक्ता श्री बेदिया ने आगे कहा बंगाल, बिहार, उड़ीसा तब एक राज्य था। बंगाल से बिहार अलग राज्य बना फिर बिहार से उड़ीसा अलग हुआ। सन् 2000 में बिहार से झारखण्ड अलग हुआ झारखण्ड राज्य बनने के बाद यहां कई मुख्यमंत्री बने परन्तु आदिवासियों के हित में कोई अच्छा कार्य नहीं किया गया आज देखा जाए तो पूरे झारखण्ड के आदिवासी को अपनी जरूरत मद में काम निकालने के लिए अपनी जमीन का आदान प्रदान, खरीद बिक्री के लिए एक हीं थाना क्षेत्र का होना चाहिए ऐसा प्रावधान 1908 से अब तक चलते आ रहा है, सरकार बताए कि आदिवासी आज की तारीख में 1908 की तरह हीं रह रहे हैं या पढ़ लिख कर हर श्रेणी के पद पर पदस्थापित हैं। इसलिए अभी के समय में सरकार को एक थाना क्षेत्र की बाध्यता को हटा देना चाहिए और धारा 46 के अंतर्गत पूरे प्रदेश में आदिवासी जमीन की खरीद बिक्री करने जैसी सीमा बढ़ा देना चाहिए ताकि उक्त तीनों श्रेणी का व्यक्ति पूरे प्रदेश में जमीन की लेन देन, खरीद बिक्री कर सके। श्री बेदिया ने आगे बताया कि जब कानून 1908 में बना था तो उस समय उक्त तीनों श्रेणी के व्यक्ति बहुत कम पढ़े लिखे थे वह आर्थिक रूप से कमजोर थे इसलिए यह कानून परिस्थितियों को देखते हुए अंग्रेजों ने बनाया था। आज की तिथि में आदिवासी नेतृत्व में झारखण्ड सरकार है हमारी सरकार को आदिवासियों की जमीन खरीद - बिक्री एवं आदान - प्रदान जैसी थाना क्षेत्र की बाध्यता को दूर करते हुए बढ़ाकर प्रदेश स्तर पर कर देना चाहिए। अधिवक्ता श्री बेदिया ने कहा की हमारे आदिवासी भाई 1908 से एक हीं थाना में कैद होकर अपनी जमीन की खरीद बिक्री तथा आदान- प्रदान करने को लेकर बाध्य हैं।
अधिवक्ता श्री आशीर्वाद बेदिया ने आगे कहा कि जब चुनाव होता है तो कोई भी थाना से लोग खड़ा होकर विधानसभा जाते हैं लोकसभा जाते हैं तो हम आदिवासी भाई क्यों नहीं अपनी जमीन की खरीद बिक्री एवं आदान प्रदान एक थाना से दूसरे थाना क्षेत्र में जमीन ले- दे सकते हैं। या जिला स्तर पर क्यों नहीं आदिवासियों की जमीन की खरीद- बिक्री हो सकती है। अधिवक्ता आशीर्वाद बेदिया ने आगे कहा आज सन् 2000 में झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री बाबू लाल मरांडी के समय काल में जो झारखण्ड में नियम कानून बनाया गया उसी नियम के तहत तथा कानून के अन्तर्गत पूरे झारखण्ड में मुखिया, पंचायत सदस्य, पंचायत समिति सदस्य, वार्ड सदस्य के पद में खड़े होकर आदिवासी भाई बहन जीतकर आते हैं, अगर हमारे प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी जी के समय काल में यह नियम और कानून नहीं लाया जाता तो एक भी आदिवासी भाई- बहन उक्त पद पर स्थान नहीं ला पाते। आज देखा जाए तो कि हमारे पार्टी की ओर से एक आदिवासी महिला झारखण्ड की पूर्व राज्यपाल श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्र का प्रथम व्यक्ति बनाए जाने हेतु उम्मीदवार घोषित किए जाने पर झारखण्ड गौरान्वित है और यह समस्त झारखण्डवासियों के लिए या आदिवासी समुदाय के लिए गौरव की बात है। दूसरी ओर श्री बेदिया ने हर्ष व्यक्त करते हुए आगे कहा कि वह इसके लिए भारतीय जनता पार्टी एवं देश के प्रधानमंत्री मान्नीय श्री नरेन्द्र मोदी जी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं साथ हीं सम्पूर्ण भारतीय जनता पार्टी एवं झारखण्ड के प्रथम मुख्यमंत्री जी को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई देते हैं।