आपातकाल के वो काले दिनः 'जनता को एक शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत थी...', इमरजेंसी पर इंदिरा गांधी के ऐसे थे विचार

News Ranchi Mail
0

                                                                         


25 जून 1975 की शाम को देश में किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि अगली सुबह उनकी जिंदगी को नर्क बनाने वाली होगी. आधी रात को ही कुर्सी के मोह में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश को इमरजेंसी की बेड़ियों में जकड़ दिया. 26 जून का सूरज निकलते ही डॉ. आंबेडकर का लिखा संविधान महज किताब बनकर रह गया और नागरिकों के मौलिक अधिकार महज बातें. 26 जून की सुबह पहले तक इस फैसले की जानकारी सिर्फ 4 लोगों को थी. एक थीं इंदिरा गांधी, दूसरे- इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी और तीसरे- पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय और चौथे- इंदिरा गांधी के विशेष सहायक आरके धवन. तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को 5वां शख्स कहा जा सकता है लेकिन उन्हें भी रात डेढ़ बजे के करीब इसकी जानकारी हुई, जब वो आदेश हस्ताक्षर के लिए उनके पास गया.संजय गांधी ने इंदिरा को आपातकाल लागू करने की सलाह दी थी. सिद्धार्थ शंकर राय ने कागजी कार्यवाही पूरी कराई थी, क्योंकि वो संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाते थे. राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही इंदिरा ने 26 जून की सुबह-सुबह रेडियो पर आपातकाल की घोषणा कर दी थी. सिद्धार्थ शंकर  ही इंदिरा को सलाह दी कि वो राष्ट्रपति से कहें कि मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने के लिए पर्याप्त समय नहीं है और आदेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करवा लें. वो खुद आधी रात को इंदिरा के साथ राष्ट्रपति भवन पहुंचे थे. 

रात 3 बजे पूरा देश सो रहा था लेकिन प्रधानमंत्री आवास पर बड़ा जरूरी काम निपटाया जा रहा था. सिद्धार्थ शंकर उनके लिए रेडियो पर पढ़ा जाने वाला भाषण तैयार करवा रहे थे. तो वहीं संजय गांधी उन नेताओं की लिस्ट बना रहे थे, जिन्हें गिरफ्तार किया जाना था. बीच-बीच में इंदिरा भी दोनों लोगों के काम को चेक करती जा रही थीं. रात 4 बजे के करीब जब सिद्धार्थ शंकर वापस अपने गेस्ट हाउस जाने लगे तो प्रधानमंत्री आवास के गेट पर ओम मेहता मिल गए. मेहता ने उनको बताया कि उन्होंने अखबारों की बिजली काटने और अदालतों को बंद रखने की योजना बना ली गई है.मेहता की बात सुनकर सिद्धार्थ शंकर राय सन्न रह गए. उन्होंने इसका विरोध करते हुए फिर से इंदिरा से मुलाकात करनी चाही, लेकिन तब तक वो सोने चली गई थीं. राय के काफी जिद करने पर इंदिरा से उनकी मुलाकात हुई. उन्होंने इंदिरा से कहा कि आपातकाल में ये सब करनी की तो बात नहीं हुई थी. उन्होंने कहा कि आजाद देश में मीडिया पर सेंसरशिप लगाना गलत है. तबतक बंसीलाल भी वहां पहुंच गए थे और उन्हें भी मामला पता चल गया. इंदिरा को समझाने की जगह बंसीलाल उल्टा सिद्धार्थ शंकर पर भड़क गए और कहा कि अपने आप को बड़ा वकील समझते हो लेकिन आता-जाता कुछ नहीं है. 

पीएन धर ने अपनी किताब इंदिरा गांधी, द इमरजेंसी एंड इंडियन डेमोक्रेसी में इस किस्से का जिक्र किया है. 26 जून से देश के नागरिकों के अधिकार छीन लिए गए. मीडिया पर सेंसरशिप लागू हो गई. देशभर में विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां शुरू हो गईं. सरकार की आलोचना करना गुनाह हो गया. लेखकों, कवियों और समाजिक कार्यकर्ताओं से देश की जेलें भरनी लगीं. कमाल की बात ये है कि इंदिरा को इसका जरा भी अफसोस नहीं रहा. उन्होंने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि देश की जनता को एक शॉक ट्रीटमेंट की जरूरत थी.

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !