पटना : पहले बिहार और उसके बाद झारखंड... बिहार में महागठबंधन में टूट हुई और नीतीश कुमार बाहर निकल गए और एनडीए में शामिल हो गए. उसके बाद खबर आई कि पूर्णिया में कांग्रेस की बैठक में केवल 7 विधायक ही पहुंचे. कांग्रेस के टूटने की अटकलें लगाई जाने लगीं. हालांकि कांग्रेस ने इसका खंडन किया और दावा किया कि उसके सभी विधायक एकजुट हैं और सभी से संपर्क कर लिया गया है. जब खबर आई कि राजद की नजर जेडीयू विधायकों पर है तो उसके बाद यह भी खबर आई कि कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा के संपर्क में हैं. इसका मतलब यह कि अगर राजद, जेडीयू विधायकों में तोड़फोड़ करता तो कांग्रेस के कुछ विधायक महागठबंधन की रणनीति को फेल कर सकते थे. यह तो हो गई बिहार की बात. अब आइए झारखंड पर नजर डालते हैं. झारखंड में जब हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दिया और उनकी गिरफ्तारी हुई तो वहां भी विधायकों को हैदराबाद शिफ्ट कर दिया गया और विश्वास मत पेश करने से ऐन पहले विधायक वापस रांची लाए गए.
मतलब साफ है... चाहे बिहार हो या फिर झारखंड, कांग्रेस के विधायक महागठबंधन या फिर इंडिया के लिए कमजोर कड़ी के रूप में सामने आए हैं. बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो के बारे में खबर आती है कि वह स्पीकर के संपर्क में हैं और जेडीयू के कुछ विधायकों से संपर्क कर लिया गया है, तभी कांग्रेस विधायकों के बारे में खबर आती है कि भाजपा के संपर्क में 10 विधायक हैं और वे कभी भी पाला बदल सकते हैं. भाजपा के कुछ वरिष्ठ विधायकों की ओर से भी यह दावा किया गया.
हालत यह हो गई कि झारखंड में विश्वास मत पेश होने के लिए वहां विधायकों को हैदराबाद से वापस लाया गया, वहीं बिहार के विधायकों को उसी दिन हैदराबाद शिफ्ट कर दिया गया. उसमें भी कांग्रेस के 3 विधायक हैदराबाद नहीं गए हैं. 19 विधायकों में से केवल 16 ही हैदराबाद शिफ्ट किए गए. अगर 3 विधायक ही खेला कर देते हैं तो बाद में जो होगा, सो होगा. फिलहाल तो एनडीए बाजी मार लेगा.
राजद की ओर से कभी कोई विधायक या फिर कभी तेजस्वी यादव की ओर से खेला होने की बात कही जा रही है पर तेजस्वी यादव और राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव भी जानते हैं कि अगर वे खेला करते भी हैं तो कांग्रेस विधायकों के चलते उनकी कोशिश फेल हो सकती है. बिहार में कांग्रेस विधायक दल में कोई तोड़फोड़ होती है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए.
कर्नाटक से लेकर गोवा, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र आदि कई राज्यों में कांग्रेस विधायकों की वजह से ही आज भारतीय जनता पार्टी सत्ताधारी दल होने का गौरव प्राप्त कर रही है. बिहार कांग्रेस में यदि कोई बगावत या टूट होती है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होनी चाहिए. इसका एक कारण यह भी है कि कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष रहे अशोक चौधरी आज की तारीख में नीतीश कुमार के खासमखास हैं और कहा जा रहा है कि वे कांग्रेस विधायकों के संपर्क में भी हैं.
कभी भाजपा नेताओं के कांग्रेस विधायकों के संपर्क में होने की बात कही जाती है तो कभी अशोक चौधरी के संपर्क में होने की बात कही जाती है. अब देखना यह है कि कांग्रेस टूटती है या नहीं. अगर टूटती है तो कौन उसे तोड़ता है- भाजपा या फिर जेडीयू. भाजपा अगर बिहार कांग्रेस विधायक दल को तोड़ती है तो वह विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन सकती है और अगर जेडीयू इस कोशिश में सफल हो जाती है तो राजद और भाजपा से विधायकों की संख्या के मामले में गैप को कुछ कम करने में सफल हो सकती है. आगे आगे देखिए, होता है क्या?