'चिलमन से लगे बैठे हैं साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं...', मशहूर शायर दाग देहलवी की ये लाइन आज बिहार में महागठबंधन की दोस्ती पर बिल्कुल सटीक बैठ रही हैं. महागठबंधन में शामिल कांग्रेस और वामपंथी दलों के साथ राजद चुनाव तो लड़ रही है, लेकिन राजद नेता तेजस्वी यादव इनके साथ चुनावी मंच नहीं साझा करना चाहते हैं. बता दें कि लोकसभा चुनाव ने एक-तिहाई रास्ता तय कर लिया है. इन तीन चरणों में बिहार की कुल 40 में से 14 सीटों पर मतदान संपन्न हो चुका है. लोकसभा चुनाव के लिए सभी दल अपने-अपने हिसाब से चुनाव प्रचार करने में जुटे हैं, लेकिन एनडीए खेमे से बीजेपी तो महागठबंधन की ओर से सर्वाधिक ताकत राजद ने झोंक रखी है. महागठबंधन की कमान पूरी तरह से लालू यादव के छोटे बेटे और पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने अपने हाथों में ले रखी है. अब तक हुए तीन चरणों में ही तेजस्वी ने करीब 100 जनसभाएं कर ली हैं. इक्का-दुक्का मौकों को छोड़ दिया जाए तो संयुक्त रूप से महागठबंधन के सभी सहयोगी साथ में नहीं दिखे. अलबत्ता वीआईपी चीफ मुकेश सहनी जरूर तेजस्वी के साए की तरह हमेशा साथ रहते हैं. इंडी अलायंस में कांग्रेस सबसे पुरानी और सबसे बड़ी पार्टी है, फिर भी क्षेत्रीय दलों के आगे उसकी हैसियत ना के बराबर नजर आ रही है. बिहार में महागठबंधन को राजद लीड कर रही है, लिहाजा लालू यादव और तेजस्वी यादव पर जिम्मेदारी भी ज्यादा है. लालू अपने स्वास्थ्य कारणों से चुनावी प्रचार में निकल नहीं पा रहे हैं, जबकि तेजस्वी खूब पसीना बहा रहे हैं. वह इतनी ज्यादा मेहनत कर रहे हैं कि उनकी पीठ में भी दर्द की शिकायत हो चुकी है. डॉक्टरों की ओर से उन्हें बेडरेस्ट की सलाह दी गई है. इसके बावजूद तेजस्वी आराम नहीं कर हैं. तेजस्वी के साथ मुकेश सहनी भी दिन-रात एक किए हुए हैं. लेकिन महागठबंधन में शामिल अन्य दलों के नेता संयुक्त रूप से एकजुट होकर प्रचार करते नहीं दिख रहे हैं. जिसे देखते हुए यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि ये दल तो हैं लेकिन कहीं न कहीं इनके बीच दूरी भी है.कांग्रेस के उम्मीदवार के प्रचार के लिए राहुल गांधी और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे बिहार आ चुके हैं. भागलपुर में राहुल गांधी की सभा में तेजस्वी और मुकेश सहनी मंच पर जरूर नजर आए थे, लेकिन खरगे के मंच पर स्थानीय राजद नेताओं के अलावा राज्य स्तर का कोई नेता नहीं दिखा. दूसरी ओर तेजस्वी के मंच पर बिहार कांग्रेस का कोई नेता मंच साझा करता नहीं दिख रहा. महागठबंधन में फूट के सवालों को राजद ने सिरे से खारिज किया है. राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन का कहना है कि अभी तो पांच चरणों का चुनाव बाकी है. जैसे-जैसे आगे की सीटों पर मतदान की तिथियां नजदीक आएंगी सहयोगी दल के नेता एक-दूसरे के साथ जरूर नजर आएंगे.राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, बिहार में कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. कांग्रेस का वोटर ही नहीं खिसका, उसके पास नेताओं तक का अभाव हो गया है. सीट शेयरिंग से लेकर टिकट वितरण तक में पार्टी की मजबूरी साफ नजर आई है. यह अलग बात है कि 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में राजद शून्य पर आउट हो गई थी और महागठबंधन की ओर से सिर्फ कांग्रेस पार्टी को एक सीट पर कामयाबी मिली थी. लेकिन 2020 में हुए लोकसभा चुनाव में तेजस्वी को कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा करना भारी पड़ गया. 70 सीटों पर लड़कर कांग्रेस सिर्फ 19 सीटें ही जीत सकी थी. तभी से राजद और कांग्रेस की दोस्ती मजबूरी वाली हो गई थी. उधर मुकेश सहनी को जमीनी नेता माना जाता है. वह अति-पिछड़ी जाति में मल्लाह बिरादरी का प्रतिनिधित्व करते हैं. प्रदेश में अति-पिछड़ों की आबादी 14 फीसदी से अधिक है. तेजस्वी इस वोटबैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं.