झारखंड से बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे की ओर से सुप्रीम कोर्ट को लेकर दिए गए बयान पर सियासत देखने को मिल है. बीजेपी सांसद के बयान पर विपक्ष ने एकजुट होकर बीजेपी और पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है. वहीं निशिकांत के बयान से बीजेपी ने खुद को अलग कर लिया है. बीजेपी का साफ कहना है कि यह बयान सांसद के अपने विचार हैं. पार्टी का इससे संबंध नहीं है. वहीं अब बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने निशिकांत दुबे का कथित तौर पर समर्थन किया है. निशिकांत के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए मनन मिश्रा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अपना काम और संसद को अपना काम करना है.
बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष मनन मिश्रा ने कहा कि निशिकांत दुबे एक वरिष्ठ सांसद हैं और भाजपा के सदस्य हैं. मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट को अपना काम करना है और संसद को अपना काम करना है. सारी बात संविधान में पहले से ही निर्धारित है, किसको क्या काम करना चाहिए और किसकी कितनी लिमिट है. उन्होंने (निशिकांत दुबे) भी कहा है कि जो भी कानून संसद या विधानसभा से पारित होते हैं, उनकी कैसे विवेचना की जाए. मैं इतना ही कहूंगा कि यह काम न्यायतंत्र का है और ऐसी स्थिति में हम यह नहीं कह सकते कि पार्लियामेंट या विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए. हालांकि, हाल में जो निर्णय आए हैं, उससे पूरे देश और संसद को थोड़ी परेशानी जरूर है.
मनन मिश्रा ने कहा कि संविधान में यह भी कहा गया है कि राज्य विधानसभाओं से जो कानून पास किए जाएंगे, अगर राज्यपाल चाहेंगे तो उसे राष्ट्रपति को रेफर कर देंगे, लेकिन जब तक कोई निर्देश प्राप्त नहीं होते हैं तो ये कानून नहीं बनेगा. उन्होंने आगे कहा कि निशिकांत दुबे ने जजमेंट को लेकर जो बातें कही हैं, मुझे ऐसा लगता है कि संविधान में कोई समय रेखा तय नहीं की गई है. हालांकि, हाल ही के एक जजमेंट ने राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समय रेखा तय कर दी, जो देश के लिए दिक्कत जरूर है. मैं समझता हूं कि इसमें सरकार को रिव्यू के लिए जाना चाहिए और इस पर भी ध्यान देना चाहिए कि सारी बातों को कंसीडर किया गया है या नहीं.
उपराष्ट्रपति जगदीश धनखड़ की सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर मनन मिश्रा ने कहा कि उपराष्ट्रपति हमारे देश के एक जाने-माने वकील भी रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के सीनियर एडवोकेट भी हैं. साथ ही वह कानून के अच्छे जानकार हैं. उनके दिल में जो बात है, वह बात इस देश के सभी नागरिकों के मन में है, जो भी निर्णय होता है या कोई कानून बनता है, उसके बहुत दूरगामी प्रभाव होते हैं. मुझे लगता है कि कहीं न कहीं कुछ गलती हुई है और जिस जज ने ये आदेश पारित किया है, वह भी इस बात को समझेंगे और इस पर पुनर्विचार होना चाहिए.