झारखंड की राजधानी रांची से महज 50 किलोमीटर दूर, नामकुम के वज्रमरा गांव की छटा देखते ही बनती है. घने जंगल, हसीन वादियां, बादलों से बतियाते पहाड़ और कलकल बहती नदियों की धाराएं यहां का नजारा बेहद मनमोहक बना देती हैं, लेकिन यह गांव जितना खूबसूरत है, बरसात के दिनों में उतना ही खतरनाक भी हो जाता है.
नाम में ही छिपा है खतरा
दरअसल, वज्रमरा गांव का नाम ही इसके इतिहास और त्रासदी को बयां करता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, इस गांव में साल में 500 से ज्यादा बार बिजली गिरती है. यह कोई बढ़ा-चढ़ाकर कही गई बात नहीं, बल्कि एक कड़वी हकीकत है. रांची के इस छोटे से गांव में शायद ही कोई ऐसा परिवार होगा जिसने वज्रपात का दर्द न झेला हो-चाहे वह फसलों का नुकसान हो, मवेशियों की मौत हो या फिर अपनों को खोने का दुख.
गांव के लोग बताते हैं कि कई दशकों पहले इस क्षेत्र में इतनी बार बिजली गिरी कि लोगों ने इसका नाम ही 'वज्रमरा' रख दिया. 'वज्रमरा' का अर्थ है 'वह जगह जहां बिजली बार-बार मार करती है'. यह क्षेत्र बिजली गिरने की घटनाओं से खास तौर पर प्रभावित है. गांव के ज्यादातर लोग खेती और पशुपालन पर निर्भर हैं, और बारिश के दौरान खेतों में काम करना या पेड़ों के नीचे शरण लेना उनके लिए जानलेवा साबित होता है.
बरसात में रहता है दहशत का साया
वज्रमरा गांव में बिजली गिरने की दहशत इतनी ज्यादा है कि बरसात के महीने में लोग पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं. पूरा महीना वे इस डर के साए में जीते हैं कि न जाने कब आसमान से आफत उनके घरों पर आ गिरे. जिन बच्चों के नानी या दादी का घर इस गांव में है, वे गर्मियों की छुट्टियां तो मनाने आते हैं, लेकिन बरसात शुरू होने से पहले ही अपने घरों को लौट जाते हैं.
वज्रपात के वैज्ञानिक और भौगोलिक कारण
वज्रमरा में वज्रपात की इतनी अधिक घटनाओं के पीछे कई वैज्ञानिक और भौगोलिक कारण हो सकते हैं. जानकारों का मानना है कि वज्रमरा और आसपास का इलाका पहाड़ी और जंगली है. ऊंचे पेड़ और पहाड़ियां बिजली को अपनी ओर खींचते हैं, क्योंकि बिजली हमेशा ऊंचे और नुकीले स्थानों पर ही गिरती है. इसके साथ ही, झारखंड में बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसूनी बादल भारी मेघगर्जन के साथ आते हैं, जिससे वज्रपात की संभावना और भी बढ़ जाती है.