बिहार में क्यों रद्द हुई विपक्षी दलों की बैठक, जानें इसके पीछे का पूरा सच

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 विपक्षी एकता का झंडा लिए घूम रहे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बड़ा झटका लगा है. 12 जून को पटना में होने वाली विपक्ष की बैठक टल गई है. इसी के साथ नीतीश की 6 महीने की मेहनत पर एक झटके में पानी फिर गया. दरअसल, नीतीश कुमार जब से महागठबंधन के साथ आए हैं तभी से बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं. राजद के समर्थन से वह स्वघोषित पीएम उम्मीदवार के तौर पर खूब पसीना बहाने में लगे हैं और मोदी को सत्ता से बाहर करने के लिए पूरे विपक्ष को एक छतरी के नीचे खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं. हालांकि नीतीश का ये प्रयास असफल होता दिखाई दे रहा है. नीतीश ने बड़ी मेहनत करके बैठक के लिए एक तारीख का निर्धारण किया था. इसके लिए उन्होंने विपक्षी दलों के नेताओं से व्यक्तिगत मुलाकात की थी. सभी की ओर से आश्वासन मिलने के बाद ही बैठक की तारीख निर्धारित की गई थी. ममता हों या अखिलेश, केजरीवाल हों या राहुल गांधी, सभी से मुलाकात की गई थी. शरद पवार हों या उद्धव ठाकरे, सभी से समय मांग कर ही बैठक की तारीख का निर्धारित की गई थी. इसके बाद ही मीडिया को इसकी जानकारी दी गई थी लेकिन अब बैठक को रद्द कर दिया गया है. इससे नीतीश की काफी किरकिरी हुई है. 

दरअसल, कांग्रेस की ओर से इस बैठक में अपने क्लास-बी के नेताओं को बैठक में भेजने का वादा किया था. हालांकि, इससे पहले राहुल और खड़गे ने खुद बैठक में आने का वादा किया था. अब पार्टी ने कहा था कि राहुल गांधी इन दिनों विदेश में हैं, जबकि बैठक वाले दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी व्यस्त हैं. राहुल-खड़गे की गैरमौजूदगी में बैठक का कोई महत्व नहीं रह जाएगा, इसीलिए बैठक को निरस्त करना पड़ा है. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बैठक को आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेस के साथ-साथ डीएमके और माकपा ने भी अनुरोध किया था. अब ये बैठक 23 जून को हो सकती है.समीकरण एक बार फिर से 2019 जैसे बनते दिखाई दे रहे हैं. जो काम आज नीतीश कुमार कर रहे हैं उस वक्त वही काम एन. चंद्रबाबू नायडू कर रहे थे. कर्नाटक के बाद कोलकाता में भी मोदी विरोधियों का जमावड़ा लगा. विपक्ष में शामिल सभी नेता एक-दूसरे का हाथ थामे दिखाई दिए. उस तस्वीर को देखकर 1977 की याद आ गई, जब इंदिरा के खिलाफ पूरा विपक्ष एकजुट हो गया था. हालांकि, सभी नेताओं की व्यक्तिगत आकांक्षाएं विपक्षी एकजुटता पर हावी पड़ गई और चुनाव आते-आते ये एकता ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी.

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