रांची में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान आदिवासी छात्र संघ का प्रतिनिधिमंडल केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री जुएल ओराम से मिला. प्रतिनिधिमंडल ने मंत्री को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपकर आदिवासी समुदाय से जुड़े शिक्षा, आरक्षण, छात्रवृत्ति और विकास से जुड़े कई अहम मुद्दे उठाए. संघ ने कहा कि आदिवासी आबादी को उनके अधिकारों और संसाधनों के हिस्से से लगातार वंचित किया जा रहा है.
ज्ञापन में कहा गया कि देश के कुल खनिज भंडार का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा झारखंड में है, लेकिन राज्य की 26.3 प्रतिशत आदिवासी आबादी को शिक्षा, नौकरी और बजट आवंटन में अपेक्षित लाभ नहीं मिल रहा. संघ ने आरोप लगाया कि कई विभागों में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए स्वीकृत पद लंबे समय से खाली हैं. प्रमोशन में आरक्षण की व्यवस्था भी सही तरीके से लागू नहीं होती, जिससे योग्य युवाओं को रोजगार और पदोन्नति का अवसर नहीं मिलता.
ज्ञापन में ट्राइबल रिसर्च इंस्टीट्यूट, झारखंड के हालिया सर्वेक्षण का भी उल्लेख किया गया. 5000 घरों पर आधारित सर्वे के अनुसार आदिवासी परिवारों की औसत वार्षिक आय मात्र 73,000 रुपये है. 45 प्रतिशत पुरुष और 63 प्रतिशत महिलाएं निरक्षर हैं. 25 प्रतिशत परिवार भोजन संकट से जूझते हैं और बड़ी संख्या में पुरुष व महिलाएं कुपोषण की स्थिति में हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि सिर्फ 16 प्रतिशत छात्र ही मैट्रिक के बाद पढ़ाई जारी रख पाते हैं, जो अत्यंत चिंताजनक स्थिति है.
प्रतिनिधिमंडल ने मांग की कि केंद्र-राज्य 75:25 अनुपात में लंबित पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति तुरंत जारी की जाए. इसके अलावा संघ ने पेसा एक्ट 1996 और मेसा कानून को राज्य में प्रभावी रूप से लागू कराने की मांग उठाई. 2011 की जनगणना में दर्ज 18.6 प्रतिशत अंतरराज्यीय विस्थापन के मुद्दे पर भी संघ ने ठोस नीति बनाए जाने की जरूरत बताई, ताकि आदिवासी युवाओं को अपने ही राज्य में रोजगार और शिक्षा का बेहतर अवसर मिल सके.
प्रतिनिधिमंडल में संघ के केंद्रीय अध्यक्ष सुशील उरांव, कोषाध्यक्ष जलेशवर भगत, रांची विश्वविद्यालय इकाई अध्यक्ष मनोज उरांव, विवेक तिर्की, प्रकाश भगत, मनीष उरांव, सुलेखा कुजूर, कार्तिक उरांव, दिनेश उरांव और रंजीत उरांव सहित कई सदस्य शामिल थे. सभी ने एक स्वर में कहा कि आदिवासी समुदाय के हित में त्वरित कार्रवाई आवश्यक है.
