झारखंड के मिनी बाबा धाम 'आम्रेश्वर धाम' में लगती है भक्तों की भीड़, जानें कितना पुराना है मंदिर

News Ranchi Mail
0

                                                                                   


खूंटी: खूंटी में झारखंड की राजधानी रांची से जिला केंद्र से 11 किमी खूंटी सिमडेगा पथ पर झारखंड का दूसरा प्रसिद्ध बाबा आम्रेश्वर धाम का काफी महात्म्य है. यहां झारखण्ड के हर कोने से श्रद्धालु पूजा अर्चना करने तो आते ही हैं. पर इसके अलावे बिहार बंगाल उड़ीसा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश सहित अन्य जगहों से भी लोग आते ही रहते हैं. बाबा आम्रेश्वर धाम में श्रावणी मेले में बाबा भोलेनाथ को जल अर्पित करने लाखों श्रद्धालु बोल बम का नारा लगाते हुए पैदल भी कांवर लेकर यहां आते हैं. बाबा आम्रेश्वर धाम में पहले बाबा भोलेनाथ का शिवलिंग आम वृक्ष के नीचे हुआ करता था. लेकिन कालांतर में आम वृक्ष पर बरगद का वृक्ष निकल आया और वट वृक्ष आम के पेड़ को समेट लिया. इसका इतिहास अद्भुत है. झारखण्ड राज्य के खूँटी जिला के अंतर्गत रांची-सिमडेगा मुख्य पथ पर स्थित ग्राम अंगराबारी और बिचना ग्राम के सिमाना में इनका निवास स्थान है. खूंटी से इसका दूरी मात्र 11 किलोमीटर है. झारखण्ड के राजधानी रांची से इसकी दूरी 44 किलोमीटर है. यहा एक विशाल आम का पेड़ झाड़ियों के मध्य बरबस अपनी ओर लोगों की ध्यान खीच लेती थी.क्योंकि इस विशाल पेड़ का फल जो भी एक बार खा चूका था. वह अवश्य दुसरों को इसके बारे बतलाता था. झाड़ी इतनी थी की अन्दर का दृश्य लोगों तक नहीं पहुच पाता था. पर यहां के स्थानीय लोगों को ये मालूम था कि यहां देवों के देव महादेव हैं. यहां गिने चुने हिन्दू परिवार रहते थे. यह एक आदिवासी बहुल क्षेत्र था और अब भी है. इसकी महिमा के बारे बहुत कम जानते थे. इसे लोग अपनी खेती-बारी के देवता मानकर पूजा करते थे.   यहां के किसान फसल लगाने के पूर्व यहां आकर भोले बाबा के दर्शन करना नहीं भूलते थे. बीज बोने से पहले उस बीज को रात भर बाबा के समीप रख जाते थे और दूसरे दिन उस बीज को खेत में लगा देते थे जब फसल काटते बाबा को जरुर अर्पण करते थे. बाबा यहां कब निकले इस बात का पुख्ता प्रमाण किसी के पास नहीं है लेकिन इसका इतिहास इस बात से प्रमाणित होता है कि जब पहला सर्वे हुआ था उस वक़्त के नक्शा पर भी बिचना मौजा के नक्शा सीट न. 1 के प्लाट न. 205 को शिव स्थान दर्शया गया थाय अभी वो नक्शा उपलब्ध नहीं है. उसके बाद जब 1932 में जब दोबारा नक्शा जारी हुआ उसमे भी उपरोक्त स्थान को शिव स्थान दर्शाया गया है जिसे अब भी देखा जा सकता है. साथ ही 1932 के खतियान में उक्त स्थल को महादेव सोकड़ा कहा गया जो आज भी वही चला आ रहा है, इस हिसाब से देखा जाय तो बाबा जी का इतिहास100 साल पुराना है.

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !