रांची: झारखंड डॉक्टर्स की किल्लत से जूझ रहा है. राज्य के मेडिकल कॉलेजों और अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी बनी हुई है. हालात ऐसे हो गए हैं कि कई विज्ञापन और इंटरव्यू के बाद भी भारी संख्या में पोस्ट खाली रह जा रहे हैं. जिससे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था प्रभावित हो रही है. ऐसे क्यों हो रहा है ये बहुत बड़ा सवाल सरकार के सामने खुद है.
डॉक्टर क्यों नहीं कर रहे जॉइन?
साल 2020, 2021 और 2023 में झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) की तरफ से इंटरव्यू में सफल हुए 143 डॉक्टरों ने अलग-अलग सदर अस्पतालों, सीएचसी और पीएचसी में अपनी ड्यूटी जॉइन नहीं की. इसके बाद राज्य सरकार ने इनकी सेवाएं समाप्त करने की घोषणा कर इन पदों को अब रिक्त घोषित कर दिया है.
हाल ही में बायोकेमिस्ट्री और एनेस्थीसिया विभाग में डॉक्टरों के बैकलॉग पदों पर भर्ती के लिए विज्ञापन जारी किया गया था, लेकिन योग्य उम्मीदवार न मिलने के कारण उसे रद्द करना पड़ा. आंकड़ों के मुताबिक, जेपीएससी ने हाल के सालों में डॉक्टरों के 1228 पदों के लिए विज्ञापन निकाले और साक्षात्कार भी आयोजित किए, लेकिन केवल 323 पद ही भरे जा सके, जबकि 905 पद खाली रह गए. इनमें से भी कई डॉक्टरों ने या तो जॉइन नहीं किया या नौकरी छोड़ दी.
पिछले कुछ सालों के आंकड़े इस समस्या की गंभीरता को दर्शाते हैं-
2018 में 386 रिक्तियों के विरुद्ध केवल 70 पद भरे जा सके.
2019 में 129 में से 52 पद भरे जा सके.
2020 में 380 में से 299 पद भरे जा सके.
इसी तरह, साल 2023 में जेपीएससी ने विशेषज्ञ डॉक्टरों के 65 बैकलॉग पदों पर स्थायी नियुक्ति के लिए प्रक्रिया शुरू की. इन पदों के लिए आवेदन करने वाले 47 डॉक्टरों के प्रमाणपत्रों की जांच भी हुई, लेकिन साक्षात्कार आयोजित नहीं हो सका. बाद में आयोग ने सूचना जारी कर कहा कि इन पदों के लिए अभ्यर्थी प्राप्त न होने के कारण विज्ञापन रद्द किया जाता है.
डब्ल्यूएचओ के मानकों से कोसों दूर झारखंड
झारखंड में डॉक्टरों की पहले से ही भारी कमी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के अनुसार, हर 1000 नागरिकों पर एक डॉक्टर होना चाहिए, जबकि झारखंड में एक डॉक्टर पर करीब 3000 मरीजों का बोझ है. राज्य में करीब 37,500 डॉक्टरों की आवश्यकता है, लेकिन उपलब्ध केवल 7000 के आसपास ही हैं, जिनमें से कई प्रशासनिक कार्यों में लगे रहते हैं.
झारखंड स्टेट हेल्थ सर्विसेस एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. विमलेश सिंह बताते हैं कि सरकारी नौकरी में डॉक्टरों की रुचि न लेने के पीछे कई कारण हैं. उनका कहना है कि पड़ोसी राज्यों की तुलना में झारखंड में डॉक्टरों का वेतनमान कम है और साथ ही, यहां के अस्पतालों में बेहतर सुविधाओं की कमी भी एक बड़ी वजह है.