अप्रैल, मई और जून में किसान फ्री रहते हैं. इन दिनों में किसानों के पास कोई काम नहीं होता. मतलब क्राइम का भी एक सीजन होता है. बिहार के एडीजी कुंदन कृष्णन का दिव्य ज्ञान ऐसे समय में सामने आया है, जब पटना में जुलाई के महीने में क्राइम बेतहाशा बढ़ा है. वहीं एडीजी यह कहकर जुलाई में हो रहे क्राइम का बचाव कर रहे हैं कि अप्रैल मई और जून में किसानों के पास कोई काम नहीं होता. एडीजी साहब खुलकर तो नहीं बोले पर उनके दिव्य ज्ञान में कइयों के ज्ञान चक्षु खुल गए होंगे.
उनके ज्ञान की दिव्यता तो और जगजाहिर हो गई, जब उन्होंने कहा कि बिहार में हत्या तो होती रहती हैं. मई और जून में ज्यादा मामले सामने आते हैं. यह सिलसिला जारी रहता है.
और जैसे ही उनके मुख से निकला... 'किसानों को कोई काम नहीं है. बरसात होने के बाद कृषक समाज के लोग व्यस्त हो जाते हैं. घटनाएँ घटती हैं. इस वर्ष चुनाव है. राजनीतिक दलों द्वारा इस पर ज़्यादा नज़र दिया गया है. उसको लेकर भी हम चिंतित हैं. नौजवान पैसे के लिए सुपारी किलिंग कर रहे हैं.' इतना सुनते ही आंखें भर आईं.
आंखें एडीजी कुंदन कृष्णन के बयान पर नहीं भर आईं, बल्कि इसलिए भर आईं कि वे हमारे बिहार के एडीजी हैं. पिछले 20 साल के पत्रकारिता करियर में इतना बड़ा ज्ञान किसी भी राज्य के एडीजी या डीजीपी ने नहीं दिया था, जो अब कुंदन कृष्णन साहब ने दिया है.
हालांकि उन्होंने अपनी बात यह कहकर खत्म की, जिसमें उन्होंने सुपारी किलिंग को रोकने के लिए नया सेल बनाने की जानकारी दी. इसमें उन्होंने बताया कि पुलिस का काम होगा सुपारी लेकर मारने वालों का डाटा बैंक बनाना और उन पर निगरानी रखना. जेल से छूटने के बाद वह क्या कर रहे हैं, क्या नहीं कर रहे हैं, उनकी भी निगरानी रखी जाएगी.
आत्मा को झकझोरने वाले एडीजी के इस बयान को लेकर उनको शत शत प्रणाम! हिम्मत चाहिए ऐसे बयान देने के लिए और वो हिम्मत कुंदन कृष्णन जी में है और उन्होंने इसे दिखा भी दिया. खैर, बिहार का भला हो. उनका रिटायरमेंट कब है भाई? देखना एक्सटेंशन न ले बैठें.