सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के डीजीपी नियुक्ति विवाद पर सुनवाई से इंकार किया, कहा- अदालत राजनीतिक बदले का मंच नहीं

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सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को चुनौती देने वाली अवमानना याचिका पर सुनवाई से मना कर दिया. मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि यह मामला दो वरिष्ठ अधिकारियों की आपसी प्रतिद्वंद्विता जैसा प्रतीत होता है. अदालत ने साफ कर दिया कि इस तरह की याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.

याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि राज्य सरकार ने डीजीपी अनुराग गुप्ता की नियुक्ति करते समय सुप्रीम कोर्ट के 2006 के प्रकाश सिंह मामले और यूपीएससी दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है. उनका कहना था कि नियुक्ति बिना यूपीएससी की अनुशंसित सूची के हुई और उनकी सेवा अवधि, जो अप्रैल 2025 में पूरी हो रही है, को बढ़ाना नियमों के खिलाफ है.

सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने सख्त लहजे में कहा कि अवमानना की कार्यवाही का इस्तेमाल राजनीतिक दुश्मनी निकालने के लिए नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने साफ किया कि राजनीतिक विवादों का निपटारा जनता के बीच होना चाहिए, न कि अदालत के मंच पर. बेंच ने यह भी कहा कि जनहित याचिकाएं समाज के कमजोर वर्गों की भलाई के लिए होती हैं, व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों के लिए नहीं.

इस याचिका को विपक्ष के नेता बाबूलाल मरांडी सहित कुछ राजनीतिक नेताओं ने आगे बढ़ाया था. अदालत ने इन्हें सलाह दी कि यदि उन्हें किसी नियुक्ति से आपत्ति है तो वे केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (CAT) में जाएं. कोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासनिक विवादों के लिए यही मंच उपयुक्त है.

याचिकाकर्ताओं ने 2006 के उस ऐतिहासिक फैसले का जिक्र किया जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि डीजीपी की नियुक्ति के लिए यूपीएससी तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की सूची भेजे और नियुक्त अधिकारी का कार्यकाल कम से कम दो साल का हो. आरोप लगाया गया कि झारखंड सरकार ने इन दिशा-निर्देशों की अनदेखी की और गुप्ता को फरवरी 2025 में डीजीपी बना दिया.

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी टिप्पणी की कि कई राज्य सरकारें स्थायी डीजीपी की बजाय कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त कर देती हैं. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश का उदाहरण देते हुए कहा कि नियमों को दरकिनार करने की यह प्रवृत्ति चिंता का विषय है. हालांकि, अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि मौजूदा याचिका को स्वीकार करना संभव नहीं है क्योंकि इसका मकसद व्यक्तिगत और राजनीतिक प्रतीत होता है.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अनुराग गुप्ता की नियुक्ति को तात्कालिक राहत मिली है. हालांकि, यह विवाद पुलिस सुधारों और प्रशासनिक पारदर्शिता पर नई बहस को जन्म दे सकता है. अदालत की टिप्पणी ने यह जरूर साफ किया कि नियमों के उल्लंघन पर ध्यान देना जरूरी है, लेकिन राजनीतिक मकसद वाली याचिकाओं को मंजूरी नहीं दी जाएगी.

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