झारखंड हाईकोर्ट ने मंगलवार को राज्य सरकार के रवैये पर कड़ी नाराजगी जताते हुए बड़ा आदेश दिया. अदालत ने साफ कर दिया कि जब तक पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरिया एक्ट) कानून लागू नहीं होता, तब तक राज्य में बालू घाटों और अन्य लघु खनिजों की नीलामी पर रोक रहेगी. चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने अवमानना याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया.
सुनवाई के दौरान पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव मनोज कुमार कोर्ट में पेश हुए. उनके जवाब से असंतुष्ट होकर खंडपीठ ने सख्त लहजे में सवाल किया, “क्या आप चाहते हैं कि हम मुख्यमंत्री और मंत्रियों को जेल भेज दें? क्या यही सुझाव है आपका?” कोर्ट ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार 73वें संविधान संशोधन की भावना को कमजोर कर रही है.
अदालत ने कहा कि अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों में भूमि और प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार ग्राम सभाओं और स्थानीय निकायों को मिलने चाहिए. लेकिन सरकार नियमावली अधिसूचित करने में लगातार टालमटोल कर रही है. इससे ग्राम सभाओं के अधिकार छिनते जा रहे हैं और खनिज संपदा पर उनका नियंत्रण खत्म हो सकता है.
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पेसा नियमावली का ड्राफ्ट जारी किया गया था और उस पर आपत्तियां तथा सुझाव मंगाए गए थे. अब नियमावली को अंतिम रूप देकर कैबिनेट और मुख्यमंत्री की स्वीकृति लेनी है. लेकिन कोर्ट ने इसे असंतोषजनक बताया. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार ने दलील दी कि सरकार जानबूझकर देरी कर रही है ताकि खनिज संपदा की नीलामी और पट्टे की प्रक्रिया पूरी की जा सके.
उल्लेखनीय है कि जुलाई 2024 में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार को दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था. इस आदेश का पालन न होने पर आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने अवमानना याचिका दायर की. 5 अगस्त को हुई सुनवाई में भी कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि आदेश के बावजूद नियमावली क्यों लागू नहीं हुई और विस्तृत शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था.