सोरेन सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत, जानें क्या है सारंडा वन क्षेत्र का मामला

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झारखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने सोरेन सरकार को सारंडा वन क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने के मामले में फिलहाल राहत दे दी है. कोर्ट ने 8 अक्टबूर दिन बुधवार को झारखंड सरकार को साफ कह दिया कि उसे पारिस्थितिक रूप से समृद्ध सारंडा वन क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) घोषित करने के मामले में 7 दिनों के अंदर फैसला करना चाहिए. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई और के विनोद चंद्रन की अध्यक्षता वाली बेंच ने की.

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से झारखंड सरकार को राहत मिली है. मामले पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कहा कि राज्य सरकार ने जो प्रपोजल दिया था उसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार किया है और हम इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. डॉ तनुज ने कहा कि झारखंड सरकार वन जीवों और आदिवासियों की सुरक्षा के लिए गंभीर है.

वहीं, मामले पर बीजेपी के विधायक सीपी सिंह ने कहा कि सरंडा वन क्षेत्र को लेकर आदिवासी संस्कृति के साथ राज्य के आर्थिक रिसोर्स को ध्यान में रखते हुए ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया गया है। बीजेपी का कहना है कि इसे लेकर गतिरोध था. राज्य सरकार की तरफ से, लेकिन जरूरत है जो फैसला राज्य हित में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लिया गया है उसका इंप्लीमेंटेशन राज्य सरकार जल्द करें.

वहीं, मामले पर बीजेपी के विधायक सीपी सिंह ने कहा कि सरंडा वन क्षेत्र को लेकर आदिवासी संस्कृति के साथ राज्य के आर्थिक रिसोर्स को ध्यान में रखते हुए ये आदेश सुप्रीम कोर्ट ने दिया गया है। बीजेपी का कहना है कि इसे लेकर गतिरोध था. राज्य सरकार की तरफ से, लेकिन जरूरत है जो फैसला राज्य हित में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से लिया गया है उसका इंप्लीमेंटेशन राज्य सरकार जल्द करें.

बता दें कि 17 सितंबर, 2025 को अपने आदेशों का पालन न करने से नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड के मुख्य सचिव को 8 अक्टूबर को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर कारण बताने का निर्देश दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि राज्य सरकार ने सारंडा वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) और सासंगदाबुरु संरक्षण रिजर्व (SCR) को संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित क्यों नहीं किया?

पीठ ने बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान कम से कम 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित करने में राज्य के लिए कोई बाधा नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि वह किसी अधिकारी को जेल भेजने के लिए उत्सुक नहीं है.

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